क्या कोरोना के इलाज में कारगर हो सकती है हैपेटाइटिस की दवा? शोध

क्या कोरोना के इलाज में कारगर हो सकती है हैपेटाइटिस की दवा? शोध

सेहतराग टीम

हाल ही में कोरोना के इलाज को लेकर एक न्य शोध किया गया है, जिसमें शोधकर्ताओं को इस बीमारी का इलाज करने के लिए एक प्रयोगिक दवा मिली है जिससे कोरोना का इलाज किया जा सकता है। यह प्रयोगिक दवा हैपेटाइटिस का इलाज करने में प्रयोग की जाती है। सीधे-सीधे कहें तो यह हैपेटाइटिस की दवा है और इससे कोरोना का इलाज भी किया जा सकता है।

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शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया है कि कोरोना के जिन मरीजों का इलाज प्रयोगिक दवा हैपेटाइटिस से किया गया था उनमें जल्द ही कोरोनावायरस से रिकवरी देखी गई। अध्ययन के मुताबकि कोरोना के जिन रोगियों में कोरोना के हल्के लक्षण मौजूद थे उन्हें पेगिनटेरफेरॉन-लैम्ब्डा दवा दी गई। पेगिनटेरफेरॉन-लैम्ब्डा प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले प्रोटीन का एक मानव निर्मित रूप है जो इम्यून सिस्टम सेल्स को इंफेक्शन की साइट पर बुलाकर सांस की बीमारियों को नियंत्रण में लाने में मदद करता है।

लांसेट रिस्पेरेटरी मेडिसीन में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, जिन मरीजों को पेगिनटेरफेरॉन-लैम्ब्डा का सिंगल इंजेक्शन लगाया गया, उनमें प्लेसेबो ग्रुप के मुकाबले सात दिनों के अंदर संक्रमण को खत्म करने की संभावना चार गुना अधिक दिखी।

टोरंटो सेंटर फॉर लीवर डिजीज, यूनिवर्सिटी हेल्थ नेटवर्क की टीम ने कहा कि रिसर्च के नतीजों से पता चलता है कि दवा वायरस के प्रसार को रोकने में मदद कर सकती है। डॉक्टर जॉर्डन फेल्ड ने कहा कि इस दवा से उपचार करने से कोरोना के मरीजों को जल्द ठीक किया जा सकता है। उन्होंने कहा खासकर वर्तमान समय में जब वायरस के वैरिएन्ट्स दुनिया भर में तेजी से फैल रहे हैं और जिन पर टीकों के अलावा एंटीबॉडीज से इलाज का कम असर होता है।

बता दें कि पेगिनटेरफेरॉन-लैम्ब्डा दवा का इस्तेमाल कुछ समय पहले सेना के जवानों में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए किया जाता था। शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों को प्रयोगात्मक दवाई दी गई, उनके कोरोना से ठीक होने की रफ्तार तेज पाई गई और उनकों अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ी। ये असर उन मरीजों में ज्यादा देखा गया जिनमें वायरस का स्तर अधिक था।

अध्ययन के मुताबिक पेगिनटेरफेरॉन-लैम्ब्डा दवाई लेने वाले मरीजों के संक्रमण से मुक्त होने की 79 फीसद संभावना थी जबकि प्लेसेबो वाले समूह में 38 फीसद रही। शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के 60 मरीजों पर मई 2020 और नवंबर 2020 के बीच मानव परीक्षण किया था।

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